Monday, July 23, 2018

Aroh Chapter 1 Literature आरोह प्रथम अध्याय गद्य भाग

विद्यार्थियों!

आज हम आरोह पुस्तिका का प्रथम अध्याय
गद्य भाग - नमक का दारोगा करेंगे |


प्रश्न - कहानी का कौन सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?
उत्तर -
कहानी का नायक वंशीधर हमें सर्वाधिक प्रभावित करता है | वह इमानदार कर्तव्यपरायण
धर्मनिष्ठ व्यक्ति है | सके पिता उसे बेईमानी का पाठ पढ़ाते हैं घर की दयनीय दशा का
हवाला भी देते हैं परंतु वह इन सब के विपरीत ईमानदारी का व्यवहार करता है वह स्वाभिमानी
है | अदालत में उसके खिलाफ गलत फैसला लिया गया परंतु उसने स्वाभिमान नहीं खोया
उसकी नौकरी भी छीन ली गई परंतु उसकी चारित्रिक दृढ़ता हमें प्रभावित करती हैं |
आखिरकार पंडित अलोपीदीन भी उसकी इस दृढ़ता पर मुग्ध हो जाते हैं | उसे वह अपनी
सारी जायदाद का आजीवन मैनेजर बना देते हैं |


कहानी का दूसरा पात्र अलोपीदीन भी हमें प्रभावित करता है | पंडित अलोपीदीन मृदुभाषी
वाक्पटु और दूरदृष्टि का स्वामी है साधन संपन्न और समाज में प्रतिष्ठित है | जो गुण वंशीधर
में है वह पंडित अलोपीदीन में नहीं है | कहानी के अंत में अलोपीदीन सभी पाठकों के मन पर
अपनी एक अनूठी छाप छोड़ता है कि वह दरोगा मुंशी दर को अपने यहां पूरी जायदाद का
मैनेजर बनाकर और अलोपीदीन एक निपुण व्यवसाई भी है | भलीभांति समझने वाला अति
कुशल व्यापारी था मैं अपने सभी कार्य को येन केन प्रकारेण करवा लेता था| पकड़े जाने पर
भी उसने अदालत के माध्यम से अपनी रक्षा कर ली थी | रक्षा ही नहीं किया अपितु वंशीधर
को नौकरी से भी निकलवा दिया| लक्ष्मी का उपासक का और ईमानदारी का कायल था |
हमें कहानी में दो ही पात्र प्रभावित करते है |

प्रश्न - सत्यवादी होते हुए भी वंशीधर अकेले क्यों पड़ गए थे ?
उत्तर -
सत्यवादी होते हुए भी वंशीधर अदालत में बिल्कुल अकेले पड़ गए थे क्योंकि वह सत्यवादी
और कर्तव्यपरायण व्यक्ति थे | अदालत में सभी व्यक्ति किसी न किसी कारण अलोपीदीन के
एहसानों के तले दबे हुए थे | इन सभी ने उससे किसी न किसी प्रकार की कृपा दया अवश्य
प्राप्त की हुई थी | वह सब अलोपीदीन को बचाने में लगे हुए थे | अदालत में सत्य की शक्ति
रिश्वत के बोझ के तले दब के रह गई |

प्रश्न - नमक का दरोगा पाठ का प्रतिपाद्य बताइए ?
उत्तर -
नमक का दरोगा प्रेमचंद की बहुचर्चित कहानी है | जिसमें यथार्थवाद का एक मुकम्मल उदाहरण
है | यह कहानी धन के ऊपर धर्म की जीत है धन और धर्म को कर्म क्षेत्र सद्वृत्ति और असद
वृत्ति  बुराई और अच्छाई असत्य और सत्य कहा जा सकता है | कहानी में इन का प्रतिनिधित्व
क्रमशा पंडित अलोपीदीन और मुंशी वंशीधर नामक पात्रों ने किया है | ईमानदार कर्म योगी
मुंशी वंशीधर को खरीदने में असफल रहने के बाद पंडित अलोपीदीन अपने धन की महिमा
का उपयोग कर उन्हें नौकरी से हटवा देते हैं | लेकिन अंत में सत्य के आगे उनका सिर झुक
जाता है | अंत में सरकारी विभाग से बर्खास्त वंशीधर को बहुत उनके वेतन और भत्ते के साथ
अपनी सारी जायदाद का स्थाई मैनेजर नियुक्त करते हैं और गहरे अपराध से भरी हुई वाणी
से निवेदन करते हैं परमात्मा से यही प्रार्थना करता हूं कि आप को सदैव वही नदी के किनारे
वाला बेमुरौवत उद्दंड किंतु धर्मनिष्ठ दरोगा बनाए रखें |

कहानी के अंत में प्रसंग से पहले तक सभी घटनाएं प्रशासनिक  और न्यायिक व्यवस्था में
व्यापक भ्रष्टाचार तथा उस भ्रष्टाचार की व्यापक सामाजिक स्वीकार्यता को अत्यंत  साहसिक
तरीके से उजागर करती है | ईमानदार व्यक्ति के अभिमन्यु के साथ निहत्थे और अकेले पड़ जाने
के यथार्थ तस्वीर भी मिलती है | प्रेमचंद इस संदेश पर कहानी को खत्म नहीं करना चाहते थे
क्योंकि उस दौर में भी मानते थे कि ऐसा यथार्थवाद  हमको निराशावादी बना देता है | मानव
चरित्र पर से हमारा विश्वास उठ जाता है हमको चारों तरफ बुराई ही बुराई नजर आने लगती
है इसलिए कहानी का अंत सत्य की जीत के साथ खत्म होता है | अंत में सच्चाई की जीत होती है |


मुख्य पात्र की विशेषताए
1 - वंशीधर                                                                                                             
- कर्तव्यनिष्                         
- लालच नहीं करने वाला
- कठोर तथा दृढ़ चरित्र
- स्वाभिमानी
- संवेदनशील
- विचारवान
- धर्म परायण
- ईमानदार  

2 - अलोपीदीन
- भ्रष्ट आचरण

- धन का उपासक
- प्रभावशाली व्यक्तित्व
- व्यवहार कुशल तथा वाक्पटुता  
- मानवीय गुणों का सम्मान करने वाला  

शुभकामनाएं सहित !


नीलम

3 comments:

Unknown said...

Thank you 😊 mam

Unknown said...

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