विद्यार्थियों
आज हम आरोह पुस्तिका का प्रथम अध्याय काव्य भाग - कबीर करेंगे |
प्रश्न - कबीर की दृष्टि में ईश्वर एक है इसके समर्थन में उन्होंने क्या तर्क दिए?
उत्तर -
कबीर ने ईश्वर की एक ही सत्ता को स्वीकार किया है जिस का स्वरुप सभी जीवो
में दृष्टिगोचर होता है | ईश्वर ज्योति स्वरूप है | संसार में सब जगह एक ही पवन
बहती है | एक ही प्रकार का जल सब की प्यास बुझाता है | एक ही परमात्मा का
अस्तित्व सभी प्राणियों में है प्रत्येक कण में ईश्वर है | सभी जीवो में उसका ही स्वरूप
विद्यमान है | सबको कुम्हार ने एक ही मिट्टी से बनाया है अर्थात परमात्मा रुपी कुम्हार
ने सब को एक ही मिट्टी से बनाया है |
प्रश्न - कबीर ने ऐसा क्यों कहा कि संसार बोरा गया है ?
उत्तर -
कबीर के अनुसार संसार बोरा गया है | सच पर विश्वास नहीं करता झूठे और ढोंगी
व्यक्ति पर अपना विश्वास कर लेता है | अर्थात जो व्यक्ति सच बोलता है | उसे मारने को
दौड़ता है | कबीर दास तीर्थ स्थान तीर्थ यात्रा टोपी पहनना, मालापहनना, तिलक लगाना,
मंत्र देना आदि तौर-तरीकों को गलत बताते हैं राम और रहीम की श्रेष्ठता के नाम पर लड़ने
वालों को गलत मानता है | कबीर के अनुसार परमात्मा एक ही है और वह सब जगह
विराजमान है | कण-कण में है |और वह सहज भक्ति से प्राप्त हो जाता है ईश्वर को
एक ही स्वरुप ना स्वीकार करते हुए लोग पत्थरों में और तीर्थ स्थानों में भगवान को ढूंढत हैं |
बाह्य आडंबरों द्वारा उस परमात्मा को पाने की कामना करते हैं परंतु अपने भीतर स्थित उसके
स्वरूप को देख नहीं पाते इसलिए कबीर की दृष्टि में यह सब पागलपन है | कबीर के अनुसार
आत्मा ही परमात्मा है अर्थात हर जीव में परमात्मा का निवास है |
प्रश्न - कबीर ने अपने आप को दीवाना क्यों कहा है ?
उत्तर -
कबीर ने माया मुक्त संसार और निर्गुण परमतत्व की सत्ता के अंतर को पहचान लिया
है | उसे सभी मनुष्यों में, सभी जीवो में उसी परमतत्व के दर्शन होते हैं | वही ज्योति का
स्वरूप सब में जगमग रहा है | यह सब जानकर कबीर आप निडर हो गए हैं उनके मन
में मोह माया संबंधी कोई डर नहीं है | दीवानों की तरह में जगह-जगह ईश्वर के स्वरूप
को ही देखते हैं | वह स्वयं संसार के राग द्वेष से लाभ हानि से मोह माया से दूर हो गए
हैं मैं परमात्मा के सच्चे साधक हो गए हैं | परमात्मा के गूढ़ रहस्य को जान गए हैं कि
हम सब में एक ईश्वर निवास करता है |
प्रश्न - कबीर की दृष्टि में किन लोगों को आत्मबोध नहीं हो पाता ?
उत्तर -
जो लोग ईश्वर को मन के भीतर ना खोज कर ईश्वर को पाया आडंबरों के सहारे मंदिर
मस्जिदों में खोजते हैं वे लोग माला तिलक टोपी धारण करके पीपल और मूर्तियों की
पूजा करते हैं तीर्थ और व्रतों का कठोरता से पालन करते हैं जो बाहर साखी शब्द गा रहे
हैं लेकिन उनके शिष्य घर-घर जाकर गुरु मंत्र देते हैं जो कुरान और धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने
और पढ़ाने पर जोर देते हैं जो धर्म के नाम पर पशुओं का वध करते हैं, मांस खाते हैं, माया
के अधीन है स्वयं को बहुत बड़े ज्ञानी होने का अहंकार पालते हैं इन सब को आतम ज्ञान
नहीं हो पाता |
प्रश्न - कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों की किन कमियों की
ओर संकेत किया है ?
उत्तर -
कबीर ने नियम और धर्म का पालन करने वाले लोगों की मुख्य कमी यह मानी है कि
वह परमात्मा तत्व से कोसों दूर है | सच्चे ज्ञान को नहीं जान पाए ऐसे लोग वास्तविक
ज्ञान से परे हैं | ईश्वर तो उनके हृदय में बसा है | जिसे पहचानने की आवश्यकता है |
इसके लिए किसी प्रकार के आडंबर की आवश्यकता नहीं है |
प्रश्न - अज्ञानी गुरुओं की शरण में जाने पर शिक्षकों की क्या गति होती है ?
उत्तर -
गुरु ही शिष्य को ज्ञान देकर ईश्वर का साक्षात्कार करवाता है यदि गुरु स्वयं अज्ञानी है
उसे ही परमात्मा का सच्चा ज्ञान नहीं है | वह स्वयं माया और अहंकार के अधीन है तो
ऐसे अज्ञानी गुरु की शरण में जाने वाले शिष्य भी अज्ञान के पथ पर अग्रसर हो जाते हैं |
गुरु और शिष्य दोनों ही माया में भ्रमित होकर डूबते हैं ऐसे शिष्यों को अंत में पछताना
ही पड़ता है |
शुभकामनाएं सहित !
नीलम
9 comments:
Thanku Mam
Thank you ma'am 😊
Thank you mam
It's really helpful.
Very helpful notes, thank you ma'am
This comment has been removed by the auther
Thank you mam
Its really helpful for us
#SASTA BLOGGER
Thanks mam it's really helpful for us
Post a Comment